वो तरफ़ रही थी, क्या चाहती थी?
कभी-कभी कोई चेहरा ऐसा दिखता है जो भीड़ में भी अकेला लगता है। उसकी आँखें किसी को तलाशती हैं, उसके होंठ चुप रहते हैं, पर दिल कुछ कहता है — यही कहानी है उसकी… जो हर रोज़ वहाँ खड़ी रहती थी।
भीड़ का हिस्सा होकर भी अलग
वो रोज़ उस मोड़ पर खड़ी मिलती थी जहाँ लोग कुछ पल रुकते और फिर बढ़ जाते। मगर वो वहीं ठहर जाती। उसका इंतज़ार खत्म नहीं होता था, शायद उसे किसी का इंतज़ार नहीं था — वो खुद को तलाश रही थी।
चेहरे पर शांति, आँखों में तूफान
वो देखने में शांत लगती थी, पर उसकी आँखों में एक गहरा दर्द था। किसी ने उससे कभी नहीं पूछा कि वह क्या चाहती है। शायद कोई समझ ही नहीं पाया कि वो वहाँ रोज़ क्यों आती है।
“मैं खुद का इंतज़ार कर रही हूँ”
एक दिन जब उससे बात करने की कोशिश की गई, तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं खुद का इंतज़ार कर रही हूँ।”
ये शब्द साधारण नहीं थे — इनमें एक पूरी कहानी थी। उसने खुद को दुनिया में कहीं खो दिया था, और अब हर दिन वहाँ आकर खुद को ढूंढ़ती थी।
उसकी चाहत क्या थी?
ना कोई नाम, ना रिश्ता — सिर्फ़ एक एहसास चाहिए था। कोई जो उसे बिना कहे समझ सके। किसी का साथ, जो शर्तों पर नहीं, दिल से मिले।
वो हर रोज़ बदल रही थी
अब उसकी आँखों में पहले जैसी बेचैनी नहीं थी। शायद उसने खुद को थोड़ा-थोड़ा पाना शुरू कर दिया था। हर दिन वो उसी जगह पर खड़ी होती थी, मगर अब वो खोई हुई नहीं लगती थी — वो मजबूत दिखती थी।
शायद हम सब की कहानी
हम सब ज़िंदगी में कभी न कभी ऐसे मोड़ पर होते हैं जहाँ हम खुद की तलाश में होते हैं। हम भी तरफ़ रहते हैं — किसी अपने की तरफ़, किसी ख्वाब की तरफ़… या खुद की तरफ़।
अंत में...
वो तरफ़ रही थी, क्या चाहती थी? शायद वही जो हम सब चाहते हैं — समझा जाना, अपनाया जाना और सबसे ज़्यादा, खुद को फिर से पा लेना।
“Love is not spoken, it’s felt – welcome to Secret Bate.”
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